Haryana Assembly Elections 2024: हरियाणा में चुपचाप खेल कर गए सैनी

हरियाणा विधानसभा चुनावों की वोटों की गिनती जारी है। जहां पहले के एग्जिट पोल्स में कांग्रेस को बड़ी जीत की ओर बढ़ते हुए दिखाया जा रहा था, वहीं आज वोटों की गिनती में तस्वीर उलटती नजर आ रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) स्पष्ट बहुमत की ओर बढ़ रही है। लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करना आसान काम नहीं होता, लेकिन भाजपा इस चुनौती को सफलतापूर्वक पार करती दिख रही है।

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By BT बाज़ार डेस्क:

दोपहर 12 बजे तक भाजपा 50 सीटों पर और कांग्रेस गठबंधन 34 सीटों पर बढ़त बनाए हुए थे। यदि भाजपा जाट बहुल क्षेत्रों में भी बढ़त हासिल करती है, तो इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस की जवान, पहलवान और किसान वाली रणनीति पूरी तरह असफल हो चुकी है। आइए देखते हैं भाजपा की इस बढ़त के पीछे कौन-कौन से प्रमुख कारण रहे।

1. एंटी-जाट वोटों का ध्रुवीकरण

हरियाणा में जाट समुदाय के वोट परंपरागत रूप से कांग्रेस और इनेलो को मिलते रहे हैं। 2014 के विधानसभा चुनावों में भी कुछ जाट वोट भाजपा को मिले, लेकिन अधिकतर वोट कांग्रेस और इनेलो के पक्ष में गए। 2019 में जाट वोट और अधिक विभाजित हो गए, जिसका फायदा कांग्रेस और जेजेपी ने उठाया। यही से भाजपा ने अपनी रणनीति बदलते हुए एंटी-जाट वोट पर ध्यान केंद्रित किया। भाजपा ने पंजाबी हिंदू, ओबीसी और ब्राह्मण समुदाय पर भरोसा किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल में पहली बार किसी जाट की जगह नहीं दी गई और राज्य में भाजपा अध्यक्ष एक ब्राह्मण को बनाया गया। मुख्यमंत्री पद के लिए एक ओबीसी नेता को चुना गया, जिसने अंततः भाजपा को बड़ी सफलता दिलाई।

2. किसानों और पहलवानों के आंदोलन को निष्प्रभावी बनाना

हरियाणा में किसानों और महिला पहलवानों का आंदोलन भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती था। लेकिन भाजपा ने इस आंदोलन के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाया, बल्कि इसे बढ़ने दिया। किसानों और पहलवानों के आंदोलन ने दूसरी जातियों और वर्गों में नाराजगी पैदा की, खासकर जब जाट समुदाय का बड़ा हिस्सा इस आंदोलन में शामिल था। भाजपा ने चुपचाप इन आंदोलनों को बढ़ते देखा और जनता में यह संदेश गया कि अगर ये लोग सत्ता में आते हैं, तो अराजकता बढ़ सकती है। इस तरह भाजपा ने एक शांत रणनीति अपनाकर कांग्रेस को इस मुद्दे पर फायदा उठाने का मौका नहीं दिया।

3. सैनी का मुख्यमंत्री बनना

चुनाव के अंतिम समय में नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला भी भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हुआ। एंटी-इनकम्बेंसी के माहौल में सैनी का शांत और सौम्य व्यक्तित्व काम आया। जहां अन्य बड़े नेताओं पर सवाल उठ रहे थे, वहीं स्थानीय भाजपा नेताओं ने जनता से यह कहते हुए राहत दी कि "अब सरकार बदल गई है, सब कुछ ठीक हो जाएगा।" सैनी ने सीमित समय में ओबीसी समुदाय के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए और योजनाएं लागू कीं, जिससे उन्हें ओबीसी वोटों का समर्थन प्राप्त हुआ।

4. मिर्चपुर और गोहाना कांड का मुद्दा

दलित वोटों का इस बार चुनाव में बड़ा महत्व रहा। हरियाणा में लगभग 20% दलित मतदाता हैं। कांग्रेस ने "संविधान बचाओ, आरक्षण बचाओ" का नारा देकर दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश की। हालांकि, भाजपा ने दलितों को यह विश्वास दिलाने में सफलता पाई कि उनके शासन में मिर्चपुर और गोहाना जैसी घटनाएं नहीं हुई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने इन घटनाओं को अपने भाषणों में बार-बार उठाया, जिससे दलितों का समर्थन भाजपा की ओर मुड़ गया।

5. भाजपा का राजनीतिक प्रबंधन

भाजपा ने हरियाणा में अपने हर कदम को बहुत सोच-समझकर उठाया। मनोहर लाल खट्टर के प्रति जनता में असंतोष था, इसलिए उन्हें कुछ समय के लिए पीछे कर दिया गया। यहां तक कि प्रधानमंत्री की सभाओं में भी खट्टर को मंच पर नहीं बुलाया गया। विनेश फोगाट द्वारा पीएम मोदी पर बार-बार निशाना साधने के बावजूद, भाजपा ने उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। टिकट वितरण के बाद असंतोष प्रकट करने वाले नेताओं को भी मुख्यमंत्री सैनी ने व्यक्तिगत रूप से जाकर मनाया।

इस तरह, हरियाणा में भाजपा की रणनीति, राजनीतिक प्रबंधन और वोटों का ध्रुवीकरण उन्हें तीसरी बार सत्ता दिलाने में महत्वपूर्ण साबित हुए।

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