PARLE-G: आम से लेकर खास की कैसे बना पहली पसंद?

PARLE-G की शुरुआत करने वाले शख्श थे मोहनलाल दयाल चौहान पहले इनका बिजनेस गार्मेंट्स का था, इन्होंने अपने बच्चों की सलाह मानी और कॉन्फेक्शनरी के बिजनेस की शुरुआत की इसके लिए मोहनलाल जर्मनी के दौरे पर भी गए। वहां उन्हें कॉन्फेक्शनरी की टेक्नोलॉजी और बिजनेस के नए-नए गुर सिखने को मिले।

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PARLE-G: आम से लेकर खास की कैसे बना पहली पसंद?

वाह! खाकर मजा आ गया शायद ही कोई होगा जिसने PARLE-G बिस्कुट को न चखा हो। बच्चे से लेकर बड़ा और अमीर से लेकर गरीब सालों से PARLE-G सबकी पहली पसंद रहा है, स्वाद भी वैसा का वैसा कई कंपनियां आईं और गईं, लेकिन जो छाप PARLE-G ने हमारे दिलों और जुबान पर बनाई वो आज भी कायम है तो ऐसे में सवाल उठता है कि आखि क्या खास है PARLE-G में? क्यों इसकी एक अलग पहचान है?

तो चलिए चलते हैं PARLE-G की शुरुआत से लेकर अबतक के सफर पर PARLE-G की शुरुआत करने वाले शख्श थे मोहनलाल दयाल चौहान पहले इनका बिजनेस गार्मेंट्स का था, इन्होंने अपने बच्चों की सलाह मानी और कॉन्फेक्शनरी के बिजनेस की शुरुआत की इसके लिए मोहनलाल जर्मनी के दौरे पर भी गए। वहां उन्हें कॉन्फेक्शनरी की टेक्नोलॉजी और बिजनेस के नए-नए गुर सिखने को मिले।

मोहनलाल दयाल चौहान, जब भारत लौटे तो उन्होंने 1929 में PARLE-G की शुरुआत की, लेकिन तब इसका नाम House of Parle था।पारले कंपनी में  ग्लूकोज, चीनी और दूध जैसे कच्चे माल से मिठाई, पिपरमिंट, टॉफी आदि बनाए जाने लगे। शुरुआती दौर में इस काम में 12 परिवारों के लोग लगे। धीरे-धीरे बिजनेस बढ़ने लगा तो पारले ने फैसला किया कि वो ऐसा बिस्कुट बनाएगी जिसे देश का आम आदमी भी खरीद और खा सके। इसी के चलते साल 1938 में पारले ग्लूकोज बिस्कुट का उत्पादन शुरू हुआ। ये बिस्कुट सस्ता होने के साथ हर जगह बाजार में मौजूद था, इसलिए इसने काफी कम वक्त में पूरे देश में अपनी पकड़ बना ली। इस बिस्कुट के साथ एक राष्ट्रवादी विचारधारा भी थी कि देश में इसे पहली बार बनाया गया है। पारले अब बिस्कुट कंपनी ही नहीं बल्कि देश की निशानी बन गई।

पारले जी के नाम के पीछे भी दिलचस्प कहानी है। दरअसल कॉन्फेक्शनरी फैक्ट्री मुंबई के विले पार्ले में थी। इसीलिए इसका नाम पारले रखा गया। वहीं बात पारले वाले G की हो तो 'जी' का मतलब है ग्लूकोज लगातार कंपनी की बाजार पर पकड़ एक दूसरी बड़ी वजह से बनी रही, बदलते वक्त के साथ अपने पोर्टफोलियो का विस्तार करना जैसे स्वीट एंड सॉल्टी बिस्किट क्रैकजैक लॉन्च करना हो या पहली मैंगो कैंडी हो या फिर हाइड एंड सीक चॉको चिप कुकीज लॉन्च करना हो। 2001 में पहली बार पारले जी कागज की पैकिंग से बाहर निकल प्लास्टिक की पैकिंग लाई।

आज देश में पारले-जी के पास 130 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं और लगभग 50 लाख रिटेल स्टोर्स हैं. हर महीने पारले-जी 1 अरब से ज्यादा पैकेट बिस्कुट का उत्पादन करती है। यहीं नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी पारले-जी का बड़ा शेयर है। ये ही है देश की पहली देसी बिस्कुट की सफलता की कहानी।


 

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