क्या आप नकली घी तो नहीं खा रहे हैं?
यदि लड्डुओं में सूअर की चर्बी, बीफ का फैट और मछली का तेल मिला है, तो यह नकली घी के इस्तेमाल के कारण ही संभव है। नकली घी जानवरों की चर्बी और उनके फैट से बनता है। घी की आपूर्ति के लिए डेयरी कंपनियों को ऑनलाइन टेंडर दिए जाते हैं, जिनका प्रबंधन मंदिर की समिति करती है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने 2019 में अपने रिश्तेदार वाई. वी. सुब्बा रेड्डी को तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया था, जो घी खरीद के लिए जिम्मेदार हैं।

आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर के लड्डू प्रसाद का मामला विवाद का विषय बन गया है। मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया है कि लड्डू प्रसाद बनाने में इस्तेमाल होने वाले घी में मछली के तेल और जानवरों की चर्बी की मिलावट पाई गई है। इस घटना के बाद पूरे देश में लोग घी के घोटाले पर चर्चा कर रहे हैं और सवाल उठा रहे हैं कि क्या तिरुपति मंदिर के प्रसाद में पवित्रता का उल्लंघन हुआ है? पहले, जब लोग लंबी उम्र तक जीते थे, तो कहा जाता था कि उन्होंने अपने जीवन में अच्छा दूध, दही और घी खाया होगा। इसी प्रकार, जब कोई व्यक्ति कुछ शुभ बोलता है, तो लोग कहते हैं, "आपके मुंह में घी-शक्कर।" किसी सफल व्यक्ति के बारे में कहा जाता है कि उसकी पांचों उंगलियां घी में हैं और भारत के लिए कहा जाता है कि यहां दूध और घी की नदियां बहती हैं।
लेकिन अब ऐसा लगता है कि हमारे देश में नकली दूध और घी की नदियां बह रही हैं और यह नकली घी तैरते हुए तिरुपति मंदिर के प्रसाद में भी पहुंच गया है। विडंबना यह है कि भारत में औसतन हर 20 दिनों में कहीं ना कहीं नकली और मिलावटी घी के खिलाफ कार्रवाई होती है, लेकिन जैसे ही यह घी मंदिर के प्रसाद में पहुंचा, तो यह देश की सबसे बड़ी खबर बन गया। अब हर घर में इस घी घोटाले की चर्चा हो रही है। सवाल यह भी उठता है कि क्या अगर किसी मिठाई की दुकान के लड्डुओं की जांच की जाए, तो क्या उनमें भी यही चर्बी और फैट मिलेगा?
अब खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण करेगा जांच
इस मामले पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से बात की है और कहा है कि मोदी सरकार इस पूरे मामले की जांच भारत के खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण (FSSAI) से कराएगी।
रिपोर्ट में तीन मुख्य बातें
अब FSSAI की टीम उस रिपोर्ट की जांच करेगी, जिसमें कहा गया है कि तिरुपति मंदिर के लड्डुओं में सूअर की चर्बी, बीफ का फैट और मछली का तेल मिलाया गया था। रिपोर्ट में तीन मुख्य बातें सामने आई हैं:
यह रिपोर्ट जुलाई के पहले सप्ताह में भेजे गए लड्डुओं और घी के नमूनों पर आधारित है।इन नमूनों की जांच गुजरात की सरकारी लैब, सेंटर फॉर एनालिसिस एंड लर्निंग इन लाइवस्टॉक एंड फूड (CALF) में हुई है, जो गुजरात के आनंद जिले में स्थित है।मंदिर समिति ने ही खुद इन नमूनों को जांच के लिए भेजा था और रिपोर्ट 17 जुलाई को सार्वजनिक हो गई थी।
रिपोर्ट जुलाई में आई, लेकिन मुद्दा अब क्यों उठाया गया?
लोग सवाल कर रहे हैं कि जब रिपोर्ट जुलाई में आ गई थी, तो मुख्यमंत्री नायडू ने सितंबर में इसे क्यों उठाया? असल में, राज्य सरकार ने जुलाई में ही इस मुद्दे को उठाया था और खराब गुणवत्ता वाला घी देने वाली एक डेयरी कंपनी को ब्लैकलिस्ट भी कर दिया था। लेकिन हाल ही में मुख्यमंत्री नायडू के एक बयान के बाद यह मामला फिर से चर्चा में आ गया।
तिरुपति लड्डू को मिला है GI टैग
आंध्र प्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर में पिछले 300 वर्षों से श्रद्धालुओं को ‘लड्डू’ का प्रसाद दिया जा रहा है। इस लड्डू को 2014 में GI टैग मिला, जिसका मतलब है कि यह लड्डू केवल तिरुपति मंदिर में ही उपलब्ध हो सकता है।
लड्डू का वजन और कीमत
प्रत्येक लड्डू का वजन 175 ग्राम होता है और इसकी कीमत 50 रुपये होती है। तिरुपति मंदिर हर साल इन लड्डुओं की बिक्री से 500 से 600 करोड़ रुपये की आय अर्जित करता है।
लड्डुओं के लिए घी का उपयोग
मंदिर समिति हर साल लड्डू बनाने के लिए 54 लाख किलो घी का इस्तेमाल करती है। इस घी को विभिन्न डेयरियों और गोशालाओं से खरीदा जाता है। लेकिन घी की बढ़ती मांग के कारण, इसे बाहर से भी खरीदा जाता है, जिससे मिलावट की संभावना बढ़ जाती है।
नकली घी तिरुपति मंदिर में कैसे पहुंचा?
यदि लड्डुओं में सूअर की चर्बी, बीफ का फैट और मछली का तेल मिला है, तो यह नकली घी के इस्तेमाल के कारण ही संभव है। नकली घी जानवरों की चर्बी और उनके फैट से बनता है। घी की आपूर्ति के लिए डेयरी कंपनियों को ऑनलाइन टेंडर दिए जाते हैं, जिनका प्रबंधन मंदिर की समिति करती है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने 2019 में अपने रिश्तेदार वाई. वी. सुब्बा रेड्डी को तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया था, जो घी खरीद के लिए जिम्मेदार हैं।
नकली घी बनाने में क्या इस्तेमाल होता है?
नकली घी बनाने में 500 ग्राम जानवरों की चर्बी, 300 ग्राम रिफाइंड पाम ऑयल और मछली का तेल, 200 ग्राम असली घी और 100 ग्राम केमिकल का इस्तेमाल होता है। इससे नकली घी को असली घी की सुगंध और दानेदार बनावट मिलती है। भारत में हर साल जितना नकली घी बनता है, उसका 5% भी पुलिस और सरकारें पकड़ नहीं पातीं और यह घी आसानी से लोगों के घरों तक पहुंच जाता है।
इस मामले ने न सिर्फ मंदिर की पवित्रता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि देश में नकली घी के व्यापार की गंभीर समस्या को भी उजागर किया है।